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रामना पिटो

हीरालाल शुक्ल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :116
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13268
आईएसबीएन :9788180319730

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यह पुस्तक रामकथा के बहाने जनजातियों की तरफ से उनकी विरासत का परिचय और उनके अपने अस्तित्व की गाथा भी प्रस्तुत करती है

गोंडी बोली में 'रामकथासार' की प्रस्तुति रचनात्मक अभाव को दूर करने की एक बड़ी कोशिश तो है ही, नई शुरुआत करने की एक दूरदृष्टि भी है!
गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' एक ऐसी कृति है, जिसका दो तिहाई से अधिक अंश वनभूमि और वनजनों से सम्बद्ध है और आदिवासियों के जीवन-जगत् में आज भी शामिल है, जिससे ये अपना सम्बन्ध पुरातन मानते हैं, इसलिए अभिन्न जुड़ाव रखते हैं।
गोंडी बोली की इस रामकथा में आदिवासी समुदाय अपने जीवन, समाज, संस्कृति और सामूहिक संघर्ष-चेतना की भी कथा देखता, जीता है। यह पुस्तक रामकथा के बहाने जनजातियों की तरफ से उनकी विरासत का परिचय और उनके अपने अस्तित्व की गाथा भी प्रस्तुत करती है!

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